Saturday, March 3, 2018

भगवान बुध्द ने क्या खोजा ?

भगवान बुद्ध दुनिया का एक रहस्य हैं।             
        भगवान तो बहुत हुए, लेकिन बुद्ध ने चेतना के जिस शिखर को छुआ है वैसा किसी और ने नहीं।
        बुद्ध का पूरा जीवन सत्य की खोज और निर्वाण को पा लेने में ही लग गया। उन्होंने मानव मनोविज्ञान और दुख के हर पहलू पर कहा और उसके समाधान बताए।

          यह रिकॉर्ड है कि बुद्ध ने जितना कहा और जितना समझाया उतना किसी और ने नहीं। धरती पर अभी तक ऐसा कोई नहीं हुआ जो बुद्ध के बराबर कह गया।
        सैंकड़ों ग्रंथ है जो उनके प्रवचनों से भरे पड़े हैं और आश्चर्य कि उनमें कहीं भी दोहराव नहीं है। जिसने बुद्ध को पढ़ा और समझा वह     # हुए बगैर बच नहीं सकता।

बुध का रास्ता दुख से निजात पाकर निर्वाण अर्थात शाश्वत आनंद में स्‍थित हो जाने का रास्ता है। बुद्ध का जन्म किसी राष्ट्र, धर्म या प्रांत की क्रांति नहीं है बल्कि की बुद्ध के जन्म से व्यवस्थित धर्म के मार्ग पर पहली बार कोई वैश्विक क्रांति हुई है। बु्द्ध से पहले धर्म, योग और ध्यान सिर्फ दार्शनिकों का विरोधाभाषिक विज्ञान ही था। काशी या कांची में बैठकर लोग माथाफोड़ी करते रहते थे।

पश्चिम के बुद्धिजीवी और वैज्ञानिक बुद्ध और योग को पिछले कुछ वर्षों से बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं। चीन, जापान, श्रीलंका और भारत सहित दुनिया के अनेकों बौद्ध राष्ट्रों के बौद्ध मठों में पश्चिमी जगत की तादाद बड़ी है। सभी अब यह जानने लगे हैं कि पश्चिमी धर्मों में जो बाते हैं वे बौद्ध धर्म से ही ली गई है, क्योंकि बौद्ध धर्म ईसा मसीह से 500 साल पूर्व पूरे विश्व में फैल चुका था।

दुनिया का ऐसा कोई हिस्सा नहीं बचा था जहाँ बौद्ध भिक्षुओं के कदम न पड़े हों। दुनिया भर के हर इलाके से खुदाई में भगवान बुद्ध की प्रतिमा निकलती है। दुनिया की सर्वाधिक प्रतिमाओं का रिकॉर्ड भी बुद्ध के नाम दर्ज है।

उन मुल्कों के मस्तिष्क में शांति, बुद्धि और जागरूकता नहीं है जिन्होंने बुद्ध को अपने मुल्क से खदेड़ दिया है, भविष्य में भी कभी नहीं रहेगी। शांति, बुद्धि और जागरूकता के बगैर विश्व का कोई भविष्य नहीं है, इसीलिए विद्वानों द्वारा कहा जाता रहा है कि बुद्ध ही है दुनिया का भविष्य। वही है अंतिम दार्शनिक सत्य।

एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। बु‍द्ध का मार्ग ही सच्चे अर्थों में धर्म का मार्ग है। दोनों तरह की अतियों से अलग एकदम स्पष्ट और साफ। जिन्होंने इसे नहीं जाना उन्होंने कुछ नहीं जाना। बुद्ध को महात्मा या स्वामी कहने वाले उन्हें कतई नहीं जानते। बुद्ध सिर्फ बुद्ध जैसे हैं।

हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों के लिए बुद्ध का होना अर्थात धर्म का होना है। बुद्ध इस भारत की आत्मा हैं। बुद्ध को जानने से भारत भी जाना हुआ माना जाएगा। बुद्ध को जानना अर्थात धर्म को जानना है।

यह संयोग ही है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में ईसा पूर्व 563 को हुआ। इसी दिन 528 ईसा पूर्व उन्होंने बोधगया में एक वृक्ष के  नीचे  ‍जाना कि सत्य क्या है और इसी दिन वे 483 ईसा पूर्व को 80 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए।

गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं, तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया। कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था।

उनका जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं समूचे भारत में था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी माँ का देहांत हो गया था।

मैत्रेय बुद्ध :ओशो की एक किताब अनुसार भगवान बुद्ध ने भिक्षुओं के आग्रह पर उन्हें वचन दिया था कि मैं 'मैत्रेय' से पुन: जन्म लूँगा। तब से अब तक 2500 साल बीत गए। कहा जाता है कि बुद्ध ने इस बीच कई बार जन्म लेने का प्रयास किया, लेकिन कुछ कारण ऐसे बने कि वे जन्म नहीं ले पाए। अंतत: थियोसॉफिकल सोसाइटी ने जे. कृष्णमूर्ति के भीतर उन्हें अवतरित होने के लिए सारे इंतजाम किए थे, लेकिन वह प्रयास भी असफल सि‍द्ध हुआ। अंतत: ओशो रजनीश ने उन्हें अपने शरीर में अवतरित होने की अनुमति दे दी थी।

बुद्ध दर्शन के मुख्‍य तत्व :चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएँ, अनात्मवाद और निर्वाण। बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिए, जो त्रिपिटकों में संकलित हैं। त्रिपिटकों का एक भाग है धम्मपद। प्रत्येक व्यक्ति को तथागत बुद्ध के बारे में जानना चाहिए।

वैदिकब्राम्हणहिन्दुत्वादी ‘सनातन’ शब्द को लेकर बडे अभिमानी है । लेकिन इन्हे या इनके प्रतिष्ठीत धार्मीक आचार्या से कभी पुछता हु कि अंत: ‘सनातन’ क्या है? 100% ‘सनातन’ वादीयों को अश: मात्र भी जानकारी नही है । यह स्थिती वैदिकब्राम्हणहिन्दुत्व कि है। पंरतू ‘सनातन’ को लेकर शेखी बहोत मारते। वास्तविक ‘सनातन’ इस शब्द‍ का वेदिकब्राम्हणहिन्दुत्व से या अन्य किसी धार्मिक रितिरिवाजों से या उनके साहित्य से दुर परे संबंध नही है। यह सब प्राकृतीक है।

भगवान बुध्द ने प्रतीत्य-समुत्पाद में अनुलोम कि परिभाषा में ‘सनातन’ क्या है ? उसे समझाया है।
अनुलोम –
1) अविद्या के प्रत्यय (कारण) से संस्कार उत्पन्न होते है ।
2) संस्कार के प्रत्य‍य से विज्ञान (चेतना) उत्पन्न‍ होते है।
3) विज्ञान के प्रत्यय से नाम-रूप (मन और शरिर) उत्पन्न होते है।
4) ‘नाम-रूप’ के प्रत्‍यय से छ:-आयतन (छ:-इंद्रिया) उत्पन्न होते है।
5) छ:-आयतन के प्रत्‍यय से स्‍पर्श (बाहर के विषय इंद्रियों को स्पर्श करना) उत्पन्न होते है।
6) स्‍पर्श के प्रत्‍यय से वेदना उत्पन्न होती है।
7) वेदना के प्रत्यय से तृष्णा‍ उत्पन्न होती है।
8) तृष्णा के प्रत्यय से उपादान उत्पन्न होता है।
9) उपादान के प्रत्यय से भव उत्‍पन्‍न होता है।
10) भव के प्रत्यय से जाति (जन्म‍) होता है।
11) जाति (जन्म‍) के प्रत्यय से दुख: उत्प‍न्न होता है।
12) दुख: जैसे जन्म‍, बुढापा, मरना, शोक, रोना, पीटना, बैचैन, परेशान होना इस प्रकार के यह सभी दुख: है।

मानवजिवन धरती पर था और जबतकर रहेंगा तबतक अविद्या से दुख होंगा ही, यह था और है एंव रहेंगा अर्थात दुखचक्र सनातन है। इस प्रकार के 12 दुखचक्र कि धारा ही ‘सनातन’ है। अगर आप उपर कि ‘तृष्‍णा’ पर नियंत्रन करना सीख लेते है तो क्या होंगा ?

भगवान बुध्द प्रतिलोम में तृष्णा पर नियंत्रन करने से क्या होंगा ? यह समझाते है।

1) अविद्या के संपुर्णता रूक जाने से संस्कार रूक जाते है।
2) संस्कार रूक जाने से विज्ञान रूक जाता है।
3) विज्ञान रूक जाने से नाम-रूप रूक जाता है।
4) नाम-रूप रूक जाने से छ:-आयतन रूक जाते है।
5) छ:-आयतन के रूक जाने से स्‍पर्श रूक जाता है।
6) स्‍पर्श रूक जान से वेदना रूक जाती है।
7) वेदना के रूक जाने से तृष्णा रूक जाती है।
8) तृष्णा के रूक जाने से उपादान रूक जाता है।
9) उपादान के रूक जाने से भव रूक जाता है।
10) भव के रूक जाने से जन्‍म होना रूक जाता है।
11) जन्म रूक जाने से दुख: रूक जाता है।
12) दुख रूक जाने से बुढापा, मरना, शोक, रोना, पीटना, बैचैन, परेशान होना यह सब रूक जाते है।

अर्थात उप्‍पर के 12 अनुलोम सनातन ‘दुख:चक्र’ है! और निचे के 12 प्रकारके प्रतिलोम कि खोज भगवान बुध्द कि थी जिसे कहा जाता है दुख:मुक्ति का ‘धम्मचक्र प्रर्वतन’। और धम्मचक्र यह दुखचक्र पर उपाय है’। दुख:चक्र सनातन ही रहेंगा यह किसी परम्परा से संबधीत नही है यह यूनिवर्सल कानुन है यह कुदरत का कानुन है। इस ‘दुखचक्र’ से मुक्ति के मार्ग को खोजने के लिये अनगिनत कल्पों तक बोधिस्तव अपनी पारमीताओं को पूरा करते है और स्वयम दुखों: से मुक्त होते है तब वह कहलाते है ‘सम्यक-सम्बुध्द’ इस खोज पर अधिपत्य मात्र ‘श्रमण संस्कृती के ‘श्रमणों’ का ही है। वैदिकब्राम्हणहिन्दु’त्व या अन्‍य परम्‍परा में दुखमुक्ति का मार्ग नही खोज सकते, यह निसर्ग का नियम है।

एस धम्मो सनंतनो अर्थात यही है सनातन धर्म। 

गूरू कृपा से ....
अनुभवि अज्ञानी ....